The Hidden Mystery Behind HANUMAT STROTM
हनूमत स्त्रोत
श्री रघुराज -पदाब्ज -निकेतन | पंकजलोचन | मंगलराशे |
चण्डमहाभुज -दण्ड सुरारि -विखंडल पण्डित | पाहि दयालो ||
पातकीनं च समुद्धर मां महंता हि सतामपि मानमुदार |
त्वा भजतो मम देहि दयाधन | हे हनूमत | स्वपदाम्बुजदास्यम ||
पुत्र -धन -स्वजनात्म -गष्हादिषु सक्तंमते रति किलीवषमूर्ते |
केंचिदप्यामलेन पुराकष्ट -पुण्य -सुपुत्रज्वलेन विभो वै ||
त्वा अजतो मम दहि दयाधन | हे हनुमत | स्वपदाम्बुजदास्याम |
ससंष्तिकूप -मनल्पमघोर निदाश -निदानमजस्त्रमशेष ||
प्राप्य सुदु :ख -सहस्त्रभुजंग -विषैक समाकुल -सर्वतनोर्मे |
घोरमहाकष्पणापदमेव गतस्य हरे पतितस्य भवाब्धौ ||
त्वां भजती मम देहि दयाधन ! हे हनुमत ! स्वपदाम्बुजदास्यम |
संशतिघोरमहागहने चरतो मणि राइजत - पुण्य - सुमुर्ते: ||
दुःख फलं कर्णादिपताशमनंग- सुपुष्प मचिंतत्य सुमुलम|
तं हयाधिरुह्य हरे पतितं शरणागतमेव विमोचय मूढ़ं ||
त्वां भजतो मम देहि दयाधन ! हे हनुमत्त ! स्वपदाम्बुज दास्यम |
संष्तिपनंग - वक्रभयें करदंष्ट्र - महाविषदग्ध - शरीरं ||
प्राणविनिर्गम - भीति समाकुल मंधमनाथमतीव विषण्णम |
मोहनहाकुहरे पतितं दययोद्धर माम् जितेन्द्रिय कामम ||
त्वां भजतो मम देहि दयाधन ! हे हनुमत्त | स्वपदाम्बुज दास्यम |
ब्रम्हा - मरुद्गण -रूद्र -महेंद्र - किरीट - सकोटि - लसपदपीठ ||
दाशरथि जपति क्षितिमंडल एष निधाय सदैव हृदयब्जे |
तस्य हनुमत्त एवं षिवंकष्टकमेतदनिष्ट हर वै ||
य: सततं हि पठेत स नरो लभतेअच्युत - रामपदाब्ज - निवासम ||
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