What Is हनुमान पंचक and How Does It Work?
हनुमान पंचक

इसकी रचना महाकवि श्री चतुरी सिंह ने की थी | वे हिंदी, संस्कृत, राजस्थानी, आदि अनेक भाषाओँ के विद्वान थे | मेवाड़ के मीरा के पश्चात चतुर सिंह की रचनाएँ आज भी मेवाड़ के घर-घर गाई जाती है |
दोहा - संचक सुख कंचक कवच पंचक पूरन बाण |
रंचक रंचक कष्ट न हनुमत पंचक जान ||
मत्तगयंद छंद
ग्राही नासहि पठाहि दिवदेवमाहाही सराहि सिधारी |
वीर समीरन श्री रघुवीरन धीरहि पीर गंभीर विदारी ||
कंद अनंद सुअंजनीनंद सदा खल्वषं मंदजहारी |
भूधर को घर के कर ऊपर निर्जर केजुड़ की जरी जारी ||
बालि सहोदर पालि लयो हरि कालि पतालिहु डालि दई है |
भालि मरालिसि सिय कराली बिडाली निषाली बिहालि भई है ||
डालि डराली महालिय राय ग़ज़ालिन चालि चपेट लई है |
ख़यालिहिं षालि दई गंध काली कपाल उत्ताली बहालि गई है ||
आसुविभावसु पासु गए अरु तांसु सुहासु गरासु धरयो है |
अच्छ सुबच्छन तच्छन तोरि स रच्छन पच्छन पच्छ करयो है ||
आर अपार कु कार पछार समीर कुमार भरयो है |
को हनुमान समान जहान बखानत आज अमान भरयो है ||
अंजनि को सूत भंजन भीरन सज्जन रंजन पंज रहा है |
रूद्र समुद्रहि धुद्र कियो पुनि क्रुद्ध रसाधर ऊर्द्ध लहा है ||
मोहिन ओप कहो पतऊ तुब जोप दया करू तोप कहा हे |
गथ्थ अकथ्थ बनत्त कहा अनुमान गए असमान बिहान निहारी |
खान लग मधवानहु को सुकियो अपमान गुमानहीं गारी ||
प्राण परान लगे लच्छमानतु आनन गणपति गिरधारी |
बान निवाय सुजान महानसु है हनुमान करान हमारी ||
दोहा:- बसुदिशि औ पौराण दषग इक इक आधे आन |
सित नवमी इश इंदु दिन पंचक जन्म जहान ||
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